Vat Savitri Katha: मान्यता है कि देवी सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे बैठकर कठोर तप से अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित किया था। vat savitri|

Vat Savitri Katha: देश के कुछ हिस्सों में वट सावित्री व्रत का काफी महत्व माना जाता है खासकर ये त्योहार यूपी-बिहार में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और देवी सावित्री से अपनी पति की लंबी उम्र के लिए पूजा-अर्चना करती हैं। आइए जानते हैं इस व्रत की शुरुआत कैसे हुई और इसकी कथा क्या है।

Vat Savitri की शुरुआत कैसे हुई

Vat Savitri व्रत को लेकर मान्यता है कि देवी सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे बैठकर कठोर तप और पविव्रता से अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित किया था। इसके अलावा भी वट सावित्री व्रत को लेकर एक और मान्यता है। कहा जाता है कि भगवान शिव के वरदान से ऋषि मार्कण्डेय को वट वृक्ष में भगवान विष्णु के बाल मुकुंद अवतार के दर्शन हुए थे। उसी दिन से वट वृक्ष की पूजा किए जाने की प्रर्था हो चली।

Vat Savitri Vrat की कथा

ये व्रत न सिर्फ पति की लंबी उम्र के लिए होता है बल्कि ये संतान के सुखी जीवन के लिए भी होता है। इस दिन बरगद के पेड़ की विधिवत पूजा करने के बाद देवी सावित्री की कथा सुनन काफी शुभ माना जाता है। कहते हैं इस कथा के बिना ये व्रत और पूजा अधूरी मानी जाती है। आइए सावित्री व्रत की कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

यहां पढ़ें पूरी वट सावित्री की पूरी कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भद्र देश के राजा अश्वपति सभी चीज से संपन्न थे बस कमी थी तो एक संतान की। लाख जतन के बाद भी जब उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ तो इसके लिए उन्होंने 18 साल तक देवी सावित्री की कठोर तपस्या की, जिसके बाद उनके घर एक सुंदर सी कन्या ने जन्म लिया। देवी सावित्री की तपस्या के बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई थी इसलिए राजा ने कन्या का नाम भी सावित्री ही रखा।

धीरे-धीरे समय बीतता गया और सावित्री बड़ी हो गई। राजा अब अपनी बेटी के लिए योग्य वर की खोज करने लगे लेकिन जब उन्हें अपनी पुत्री के गुणों के मुताबिक योग्य वर नहीं मिला तो वे दुखी रहने लगे। ऐसे में राजा ने सावित्री को खुद ही अपना पति ढूंढने के लिए भेज दिया। ऐसे में योग्य वर की तलाश में भटकते-भटकते सावित्री जंगल पहुंच गई जहां उनकी मुलाकात सत्यवान से हुई जो द्दुमत्सेन पुत्र थे सावित्री ने सत्यवान से विवाह कर लिया।

सावित्री और सत्यवान के विवाह के बाद नारद जी ने सावित्री के पिता अश्वपति को बताया कि सत्यवान गुणवान और धर्मात्मा है, लेकिन वह अल्पायु है। विवाह के एक साल बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। जिसके बाद पिता ने सावित्री को बहुत समझाया लेकिन वे नहीं मानीं। उन्होंने कहा सत्यवान ही उनके पति हैं और वह दूसरा विवाह नहीं कर सकती हैं। सत्यवान अपने माता-पिता के साथ वन में रहते थे। सावित्री भी उन्हीं के साथ रहने लगी।

वहीं जब से सावित्री को सत्यवान की अल्पायु की बात पता चली थी तभी से वह व्रत रखने लगी थीं। ऐसे ही समय बीतता गया और फिर वो दिन आया जिस दिन सत्यवान की मृत्युो लिखी थी, उस दिन सत्यवान जब लकड़ी काटने के लिए जंगल गए तो उनके साथ-साथ सावित्री भी चल पड़ी। सत्यवान जैसे ही लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ने लगे, तभी उनके सिर में तेज दर्द होने लगा और वह वृक्ष से नीचे उतर कर सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए।

कुछ समय बीतने के बाद सावित्री ने देखा कि यमराज मयदूतों के साथ सत्यवान के प्राण लेने आए हैं। जैसे ही वो सत्यवान के प्राण को लेकर जाने लगे सावित्रि भी उनके पीछे-पीछ जाने लगी। जब कुछ देर बाद यमराज का ध्यान सावित्री पर गया तो उन्होंने देखा की वो भी उनके पीछे-पीछे चली आ रही हैं, तो उन्होंने सावित्री से कहा कि सत्यवान और तुम्हारा साथ बस धरती तक ही था अब तुम वापस लौट जाओ। तब सावित्री ने कहा कि जहां पति जाएंगे वहां उनके साथ जाना एक पत्नी का धर्म है।

ये बातें सुनकर यमराज सावित्री के पतिव्रता धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा तब सावित्री ने सबसे पहले अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी वापस आने का वर मांगा तब यमराज ने उन्हें ये वरदान दे दिया और सत्यवान को फिर ले जाने लगे। कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि फिर सावित्री उनके पीछे-पीछे चल रही हैं, तो उन्होंने फिर एक वरदान मांगने को कहा इस बार सावित्री ने अपने सास-ससुर का खोया हुआ राजपाट वापस मिलने का वरदान मांगा और यमराज ने ये वर भी दे दिया।

इसके बाद यमराज फिर जाने लगे सावित्री भी हटी थी वो कहा बिना अपने पति के प्राण वापस लिए मानने वाली थी वो फिर से यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। ऐसे में यमराज ने उनसे एक और वरदान मांगने को कहा इस बार सावित्री ने 100 पुत्रों की माता होने का वर मांग लिया। अपने वचन से बंधे यमराज ने सावित्री को 100 पुत्रों की माता होने का वरदान दे दिया और सत्यवान के प्राण लौटा दिए और वे वहां से अदृश्य हो गए।

100 पुत्रों की माता होने का वरदान मिलने के बाद सावित्री वापस उसी वट वृक्ष के पास वापस आ गईं जहां उन्होंने देखा कि सत्यवान जीवित हो गए हैं। सावित्री के व्रत और पतिव्रता धर्म से सत्यवान को दोबारा प्राण दान मिल गया तभी से वट सावित्री व्रत की प्रथा चल पड़ी। कहा जाता है कि वट सावित्री पूजा के दौरान सावित्री की ये कथा सुने बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

यह भी पढ़ें… Vat Savitri: आप भी रखने जा रही हैं वट सावित्री व्रत तो खुद को ऐसे करें तैयार, पूरे दिन बनी रहेंगी एनर्जेटिक

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। Bharat Bulletin News इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

यह भी पढ़ें… Vat Savitri: वट सावित्री व्रत का क्या है महत्व, दाम्पत्य जीवन की खुशहाली के लिए कैसे करें पूजा?

Leave a Reply

Your email address will not be published.